वक़्त के साथ साहिल बदल जाता है।
पल दो पल में आशिक़-ए-दिल बदल जाता है।
क्या है यह राह-ए-जिंदगी का सफ़र,
कि चलते-चलते मौज़-ए-मंज़िल बदल जाता है।
Tuesday, June 16, 2015
वक़्त के साथ साहिल बदल जाता है
Wednesday, June 10, 2015
लिखूँ कुछ भी ज़िक्र तेरा ही रहता है
लिखूँ कुछ भी ज़िक्र तेरा ही रहता है,
देखूँ जिसे भी फ़िक्र तेरा ही रहता है।
दिवाना तो नहीं लेकिन, खुदा,
दिवानगी में झुका सर मेरा ही रहता है।
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कभी रगों के लहू से टपकी
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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कुछ इस तरह गुज़री है जिंदगी मेरे आगे, जैसे पालक झपक कर निकल गई मेरे आगे। परत-दर-परत खुलता गया राज़ कहानी का, शायद, आख़री किरदार हो एक आईना...
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कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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दूर तक जाते रास्तों पर मैं दूर तक चला. मिले पड़ाव कई मगर ठिकाना एक न मिला. बस अब नहीं, हर बार यह सोच, एक कदम और चला. जब मुड़ के देखा तब दिखा...