लिखूँ कुछ भी ज़िक्र तेरा ही रहता है,
देखूँ जिसे भी फ़िक्र तेरा ही रहता है।
दिवाना तो नहीं लेकिन, खुदा,
दिवानगी में झुका सर मेरा ही रहता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कभी रगों के लहू से टपकी
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
-
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
-
दूर तक जाते रास्तों पर मैं दूर तक चला. मिले पड़ाव कई मगर ठिकाना एक न मिला. बस अब नहीं, हर बार यह सोच, एक कदम और चला. जब मुड़ के देखा तब दिखा...
-
हतास भी नहीं थे निराश भी नहीं थे लेकिन जिंदगी के पास भी नहीं थे तृप्त भी नहीं थे प्यास भी नहीं थे सपने कुछ खास भी नहीं ...
No comments:
Post a Comment