कभी रगों के लहू से टपकी,
तो कभी बदन के पसीने से।
कभी थरथराते होटों से,
तो कभी धधकते सीने से।
टपकी है हर बार,
आजादी,
यहाँ घुट-घुट के जीने से।
मैं आजाद हूँ... क्या ?
तो कभी बदन के पसीने से।
कभी थरथराते होटों से,
तो कभी धधकते सीने से।
टपकी है हर बार,
आजादी,
यहाँ घुट-घुट के जीने से।
मैं आजाद हूँ... क्या ?