Wednesday, August 29, 2001

ऐ वक़्त जरा थम तो सही

 वक़्त जरा थम तो सही,
तनिक रुक के ले दम तो सही.
क्या बतओगे तुम किस और रुख कर,
किस दिशा में जाओगे तुम.
मैं अकेला, ढुन्ढता एक साथी,
क्या साथ मेरा निभओगे तुम?
मैं भी हूँ एक राही,
चलना मेरी फ़ितरत हैं.
नहीं जानता मैं,
आगे कैसी किस्मत हैं.
फ़िर भी, न हो निरास बढ चला हूँ,

मैं छाछ फुक के पीता, दुध का जला हूँ.

3 comments:

Shashi Singh said...

Baba...Keep posting more poems...

Ritesh Anand said...

Gud one Sattu boss..Btw u recited dis one 2 us wen i was in bangalore.. keep posting.

Abhi said...

lage raho sattubhai!!!

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...