मैं जिस सवेरा को खोजता
रहा हर अँधेरे में कहाँ-कहाँ
मालूम ना था कि वो
मिलेगा तुमसे मिलके यहाँ |
वो उड़ते लहराते हुए आसमां
के नीचे इठलाता हुआ बादल,
उसी मस्ती में झूमकर उठता
हुआ एक मस्तमौला नया कल,
के आँगन में मासूम से एक किनारे,
ठिठोली करता हुआ मासूम सा पल |
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