Wednesday, April 13, 2011

मंद मंद बहती बयार, अब आंधी बन चली

मंद मंद बहती बयार
अब आंधी बन चली
बन्धनों को कर तार-तार
अब क्रांति बह चली

खोल दो प्रहरी ये द्वार
जन-क्रांति बह चली
ख़त्म होने को भ्रष्टाचार
विश्व-शांति कह चली

ये खेल होगा अब आर-पार
जन-भ्रान्ति हट चली
जन-क्रोध का चढ़ता पारावार
भांति-भांति बढ़ चली

बदलाव के चक्र का प्रहार
अब अंधी बन चली
मिट जायेगा दुराचार
ईश्वर से संधि मन चली

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