Thursday, April 21, 2011

संग जीवन-धार के, तैर उस पार रे

संग जीवन-धार के
तैर उस पार रे
तू तेरा पतवार रे
क्यूँ बैठा हार के
राजा, रंक या साहूकार रे
मरना एक बार रे
क्यूँ किनारे बैठ मरता बार-बार रे
यह लड़ाई तेरी लड़ आर-पार रे

1 comment:

Gargi Gupta said...

ahaan....ready to fight back with life :)

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...