अजीब हल-चल हैं
अजनबी पल हैं
जो साथ आज,
नहीं वो कल हैं
काली रात का
काला दलदल हैं
अजनबी पल हैं
जो साथ आज,
नहीं वो कल हैं
काली रात का
काला दलदल हैं
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...