Friday, February 21, 2014

क्यूँ दिल बेक़रार इतना?

क्यूँ दिल बेक़रार इतना?
क्यूँ तेरा इंतज़ार इतना?

टपकती हैं जो आँखों से बूंद बनके 
क्यूँ इनमें प्यार इतना?
आशिक़ी के मंज़िल तक पहुँचने में
क्यूँ इस राह में हार इतना?

क्यूँ दिल बेक़रार इतना?
क्यूँ तेरा इंतज़ार इतना?

शब्दों का ताना-बाना

शब्दों का ताना-बाना
ख्वाबों ने कई बार बुना
मन के कैनवास पर
भावों ने कई रंग चुना 

जागती हुई कहानियों ने
कई बार करबटें बदली
उनमें से किरदारों ने झाँका
जैसे दुल्हन कोई नई नवेली

कुछ अरमानों ने पँख फैलाए
बातों ने ली अंगड़ाई
आँखें मलता हुआ जगा सवेरा
और जागी उम्मीदें खोई-खोई 

Thursday, February 06, 2014

अनंत पे टहल रहे

अनंत पे टहल रहे
बादलों
का रंग लाल क्यूँ हैं?
छाई हैं चारों तरफ
लालिमा
कैसी।
यह क्या, कहीं दूर
आसमान
की एक छोर
पर देखो वो
सूरज
डूबा जा रहा हैं,
और घुला जा रहा हैं
समंदर
की नमकीन पानी में।
शायद,
अब रात दूर नहीं।

Monday, February 03, 2014

मेरी चाहत किस मोड़ पे आ रुकी हैं

मेरी चाहत किस मोड़ पे आ रुकी हैं
तुम सामने हो और मेरी आँखें झुकी हैं
देखूँ तुम्हें तो देखूँ कैसे, कहीं
दिख जाये ना जो हसरतें छुपी हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं

गुम हैं आज हसरतों के जुबां
कुछ अधूरे से जज्बातों की झड़ी हैं
कुछ फासलों का हैं दरमियाँ
कुछ सपनों की आज बेरुखी हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं

धू-धू कर जला था कभी दिल मेरा
तेरी याद में, वो आग कबकी बुझी हैं
लेकिन राख के इस ढ़ेर में
एक हलकी सी चिंगारी अभी भी बची हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं


कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...