Monday, February 03, 2014

मेरी चाहत किस मोड़ पे आ रुकी हैं

मेरी चाहत किस मोड़ पे आ रुकी हैं
तुम सामने हो और मेरी आँखें झुकी हैं
देखूँ तुम्हें तो देखूँ कैसे, कहीं
दिख जाये ना जो हसरतें छुपी हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं

गुम हैं आज हसरतों के जुबां
कुछ अधूरे से जज्बातों की झड़ी हैं
कुछ फासलों का हैं दरमियाँ
कुछ सपनों की आज बेरुखी हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं

धू-धू कर जला था कभी दिल मेरा
तेरी याद में, वो आग कबकी बुझी हैं
लेकिन राख के इस ढ़ेर में
एक हलकी सी चिंगारी अभी भी बची हैं

इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं
इसलिए मेरी आँखें झुकी हैं


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