मेरे मौला,
तेरी इबादत में जो झुका
हैं सर मेरा
वो कभी उठने ना पाए
खुबशुरत हैं बस तेरा चेहरा
जिसे कभी देखा भी नहीं,
लेकिन नज़रे कभी हटने ना पाए
फ़ना हो जाये पतंगा
तेरे इश्क में मालिक
यह आग कभी बुझने ना पाए
तेरी ही चाहत दिन-रात रहे
कोई आरज़ू दूसरी,
देखो सटने ना पाए
समंदर की राह तक-तक
घुल रहा बूंद, देखों
यह साबुत बचने ना पाए
तेरी इबादत में जो झुका
हैं सर मेरा
वो कभी उठने ना पाए
खुबशुरत हैं बस तेरा चेहरा
जिसे कभी देखा भी नहीं,
लेकिन नज़रे कभी हटने ना पाए
फ़ना हो जाये पतंगा
तेरे इश्क में मालिक
यह आग कभी बुझने ना पाए
तेरी ही चाहत दिन-रात रहे
कोई आरज़ू दूसरी,
देखो सटने ना पाए
समंदर की राह तक-तक
घुल रहा बूंद, देखों
यह साबुत बचने ना पाए
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