Tuesday, November 18, 2014

रात की चादर

रात की चादर 
सन्नाटे का शोर 
और 
चेहरे को भिगोती 
मंद-मंद ठंडी हवा 

शाम का घिरना

शाम का घिरना
बारिश का आना
ठंडी बहकी हवाओं में
दिल का सिहर जाना
कुछ ऐसा हैं मौसम 

पल का क्या हैं

पल का क्या हैं
गुज़र ही जायेगा
एक कल (yesterday) चला गया
दूसरा कल आएगा
यादों के तकिये पे
सपनों के बिस्तर पर
तनहा दिल आया था
और तनहा चला जायेगा

लफ्ज़ो पे दुनिया मरती हैं

लफ्ज़ो पे दुनिया मरती हैं 
यहाँ प्यार भी एक "lip-service" हैं
"I love you" का स्वांग देखो
एक रटा रटाया ख्याल लगता हैं
कहने वाला बेदिली से कहता हैं
सुनने वाला बेपरवाह लगता हैं

Monday, November 10, 2014

यह ख़ता हैं ख़ुदा की

यह ख़ता हैं ख़ुदा की
या सज़ा हैं चाँद की
कि अकेला हैं
तारों के साथ भी,
और
तारों के बाद भी

कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...