Wednesday, May 06, 2015

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है-2

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

नाज़ुक मोड़ पे खड़े रिस्तो को
रेशमी धागों से जोड़ती है।
सुन्न पड़े भावो में जीवन
के सुर टटोलती है।

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

खोल उन पन्नो को, जिनकी सिर्फ़ यादे बची,
थमी-सी जिंदगी में प्राण घोलती है,
और जीवंत हो उठता है तन-मन मेरा;
छोटी ही सही वो पल मोल की है।

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

Tuesday, May 05, 2015

मेरे जीवन का आधार तुम

मेरे जीवन का आधार तुम
मेरे कल-आज-कल का व्यापार तुम
मेरी बोली की झंकार तुम
मेरी बेचैनी की अश्रुधार तुम
मेरे हृदय का प्यार तुम
मेरे जीत का श्रृंगार तुम
मेरे ममत्व का दुलार तुम
मेरे क्रोध का ज्वार तुम
मेरी तृष्णा की पुकार तुम
मेरे समर का ललकार तुम
मेरी साधना की ॐकार तुम

क्यों रहता मैं कुछ लिखने को तत्पर

क्यों रहता मैं कुछ लिखने को तत्पर ?
क्यों है भावो की वेदना इतनी प्रखर ?
जो मथानी बनाये रहती हृदय को,
जब-तक यह कागज पे ना उदय हो। 

है क्या यह एकाकीपन की अभिव्यक्ति ?
या मेरी स्वछंद कल्पना की विस्तृति ?
जो उफ़नती नदी सी, तोड़ना चाहती मन-किनार,
और कर जलसमाधि मेरा सम्पूर्ण आकार।

खोजूँ कहाँ इन प्रश्नों के उत्तर? बस,
इसी ख़ोज में लिखता जाता हूँ कि
शायद, एक दिन 
लेखनी खुद देगी इनका उत्तर।  

Monday, May 04, 2015

उस पल... इस पल...

उस पल
में थे तुम साथ कभी
इस पल
में रह गई है याद कोई

उस पल
में निकली थी बात कोई
इस पल
में अब वो याद नहीं

उस पल
में प्यारा तेरा प्यार सखी
इस पल
में दिल की है हार सखी

उस पल
का है अनंत विस्तार  कहीं
इस पल
का जैसे कोई आधार नहीं

उस पल
में उम्र कम लगता
इस पल
में हर क्षण भार कोई

उस पल
का जो है याद प्रिये
इस पल
को करता आघात प्रिये

उस पल
से
इस पल
को
आज़ाद करो
आज़ाद करो
आज़ाद करो !!!
ना बर्बाद करो
ना बर्बाद करो
ना बर्बाद करो!!!






तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

खट्टी-मीठी यादों को समेटे
जब अपनी पोटली खोलती है,
एक युग दौड़ जाता आँखों के सामने-
ये कहानियाँ बड़े मोल की है !

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।

कुछ चढ़ते हुए तराने गा के, तो
कभी डूबते नगमों संग डोलती है।
फासलों का करा एहसास कभी,
कुछ नजदीकियाँ खोलती है।

तस्वीरें बहुत कुछ बोलती है।


 

Friday, May 01, 2015

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।
कुछ लफ़्जों से बयां कर,
कुछ दिल में दबाये जाते है।
जग से प्रेम का अरमान लिए
ख़ुद को जग में बिसराये जाते है। 

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।
रह-रह के लगता है घात नया,
रुक-रुक के मलहम लगाए जाते है।
छन-छन कर टूटता रिश्तों का कांच यहाँ
हम गोंद लिए चिपकाये जाते है।

एक पूरी जिंदगी हम जाने किस आश में जिये जाते है।



कभी रगों के लहू से टपकी

कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...