क्यों रहता मैं कुछ लिखने को तत्पर ?
क्यों है भावो की वेदना इतनी प्रखर ?
जो मथानी बनाये रहती हृदय को,
जब-तक यह कागज पे ना उदय हो।
क्यों है भावो की वेदना इतनी प्रखर ?
जो मथानी बनाये रहती हृदय को,
जब-तक यह कागज पे ना उदय हो।
है क्या यह एकाकीपन की अभिव्यक्ति ?
या मेरी स्वछंद कल्पना की विस्तृति ?
जो उफ़नती नदी सी, तोड़ना चाहती मन-किनार,
और कर जलसमाधि मेरा सम्पूर्ण आकार।
खोजूँ कहाँ इन प्रश्नों के उत्तर? बस,
इसी ख़ोज में लिखता जाता हूँ कि
शायद, एक दिन
लेखनी खुद देगी इनका उत्तर।
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