पूछो ना हमसे- हमारी मंज़िल क्या है?
मझधार में नाव का साहिल क्या है?
उफनते पानी और तूफानों को छोड़,
रखा इस महफ़िल में क्या है।
मझधार में नाव का साहिल क्या है?
उफनते पानी और तूफानों को छोड़,
रखा इस महफ़िल में क्या है।
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
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