कही शब्दों का जोड़,
कभी तस्वीरों की उभार,
हर अभिव्यक्ति मेरी
अंतर्मन का अन्तर्द्वन्द है।
सिमटा हुआ शरीर मेरा,
मन लेकिन स्वछन्द है।
कभी तस्वीरों की उभार,
हर अभिव्यक्ति मेरी
अंतर्मन का अन्तर्द्वन्द है।
सिमटा हुआ शरीर मेरा,
मन लेकिन स्वछन्द है।
कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से। टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...
No comments:
Post a Comment