Friday, October 23, 2015

कुछ लिखना था

कुछ लिखना था
लम्हों के कागज़ पे,
ख्वाबों के स्याह से।
कमबख्त जिंदगी की
कलम ही टूट गई। 

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कभी रगों के लहू से टपकी, तो कभी बदन के पसीने से। कभी थरथराते होटों से, तो कभी धधकते सीने से।  टपकी है हर बार, आजादी, यहाँ घुट-घुट के जीने स...