चलते-चलते दूर कहीं निकल गया हूँ, माँ
जलते-जलते मोम सा पिघल गया हूँ, माँ
दर्द के कई घुट अब तक निगल गया हूँ, माँ
चिकनी राह में कई बार फिसल गया हूँ, माँ
मैंने ऊपर की पंक्तियाँ लिखी | आगे कुछ नहीं लिख पाया तो मैंने उसे यथावत पोस्ट कर दिया | मेरे प्रिय मित्र पंकज ने इससे बड़ी खूबसूरती के साथ आगे बढाया | नीचे पढ़िए |
चाहे कितना भी दूर निकलू,
पर हमेशा तेरे पास ही हूँ, माँ
तेरी याद की ठंडी छाहों में, पिघलने
के बाद फिर से जम गया हूँ, माँ
दर्द के हर घूंट को तेरे हाथ का निवाला
समझ, बड़े प्यार से निगला गया हूँ, माँ
चिकनी राह पे जब भी फिसला, तेरा
हाथ पकड़ फिर संभल गया हूँ, माँ
जलते-जलते मोम सा पिघल गया हूँ, माँ
दर्द के कई घुट अब तक निगल गया हूँ, माँ
चिकनी राह में कई बार फिसल गया हूँ, माँ
मैंने ऊपर की पंक्तियाँ लिखी | आगे कुछ नहीं लिख पाया तो मैंने उसे यथावत पोस्ट कर दिया | मेरे प्रिय मित्र पंकज ने इससे बड़ी खूबसूरती के साथ आगे बढाया | नीचे पढ़िए |
चाहे कितना भी दूर निकलू,
पर हमेशा तेरे पास ही हूँ, माँ
तेरी याद की ठंडी छाहों में, पिघलने
के बाद फिर से जम गया हूँ, माँ
दर्द के हर घूंट को तेरे हाथ का निवाला
समझ, बड़े प्यार से निगला गया हूँ, माँ
चिकनी राह पे जब भी फिसला, तेरा
हाथ पकड़ फिर संभल गया हूँ, माँ