मैं चल पड़ा अपनी सफ़र पे,
ले सपनों की गठरी सर पे |
आँखों में भर एक चमक,
चाल में लिए मस्त खनक |
अजनबी दुनिया की गोद में,
मैं बढ चल एक खोज में |
कुछ हैरानी से, कुछ डर से
मैं निकल पड़ा घर से |
दुःख को मैं सहलाता चला,
ठेश को मैं भुलाता चला |
ले सपनों की गठरी सर पे |
आँखों में भर एक चमक,
चाल में लिए मस्त खनक |
अजनबी दुनिया की गोद में,
मैं बढ चल एक खोज में |
कुछ हैरानी से, कुछ डर से
मैं निकल पड़ा घर से |
दुःख को मैं सहलाता चला,
ठेश को मैं भुलाता चला |